“Goa Circular on the Unauthorized Use of Sound Recordings During Weddings Hits a Wrong Note!”
- परिप्रेक्ष्य (पृष्ठभूमि):
- गोवा सरकार ने 30 जनवरी 2024 को एक सर्कुलर जारी किया, जो जुलाई 2023 में केंद्रीय सरकार द्वारा जारी किए गए सार्वजनिक नोटिस का संदर्भ देता है।
- इस सर्कुलर में कहा गया कि विवाह समारोहों में ध्वनि रिकॉर्डिंग के अनधिकृत उपयोग के लिए अनुमति या एनओसी की आवश्यकता नहीं है, और कॉपीराइट सोसाइटियों या होटलों द्वारा रॉयल्टी या शुल्क मांगने पर सख्त कार्रवाई की जाएगी।
- कानूनी चुनौती:
- फोनेटोग्राफिक परफॉर्मेंस लिमिटेड (PPL) और सोनोटेक कैसैट्स ने इस सर्कुलर को अदालत में चुनौती दी।
- उन्होंने तर्क दिया कि सरकार ने धारा 52(1)(za) के दायरे का विस्तार करके और कॉपीराइट प्रवर्तन तंत्र में हस्तक्षेप करके अपने अधिकार से बाहर हो गए हैं।
- अदालत का निर्णय:
- बॉम्बे हाई कोर्ट ने गोवा में 13 अगस्त 2024 को इस सर्कुलर को खारिज कर दिया।
- कोर्ट ने निर्णय दिया कि सर्कुलर असंवैधानिक है क्योंकि इसने कानून के दायरे का विस्तार किया है और कॉपीराइट धारकों के अधिकारों का उल्लंघन किया है।
- सर्कुलर को अल्ट्रा वायर्स (कानूनी अधिकार से परे) ठहराया गया।
- चलती विवाद:
- यह मुद्दा न्यायपालिका और कार्यपालिका के बीच लंबे समय से चल रहे बहस का हिस्सा है, जो विवाह समारोहों में ध्वनि रिकॉर्डिंग के उपयोग को लेकर है।
- कोर्ट ने जोर दिया कि कॉपीराइट उल्लंघन का निर्धारण न्यायपालिका के हाथ में होना चाहिए, कार्यपालिका के नहीं।
- विश्लेषण और आलोचना:
- गोवा राज्य ने इस सर्कुलर को भारतीय संविधान के अनुच्छेद 162 के तहत न्यायसंगत ठहराया, लेकिन उन्होंने मूल नोटिस में इस औचित्य को शामिल नहीं किया।
- आलोचकों का कहना है कि सरकार ने उचित जांच नहीं की और धारा 52(1)(za) की मौजूदा न्यायिक व्याख्याओं की अनदेखी की।
- जनता पर प्रभाव:
- सर्कुलर का उद्देश्य कॉपीराइट मालिकों द्वारा उत्पीड़न को रोकना था, लेकिन इसमें स्पष्टता और कानूनी आधार की कमी थी।
- कोर्ट ने कॉपीराइट अधिनियम में स्थापित मौजूदा प्रवर्तन तंत्रों पर प्रकाश डाला, जैसे कि धारा 60, जो पक्षों को बेसबॉल कानूनी धमकियों के खिलाफ क्षतिपूर्ति या इनजंक्शन प्राप्त करने की अनुमति देती है।
- व्यापक प्रभाव:
- यह मामला कॉपीराइट मालिकों के अधिकारों की रक्षा और जनता को उत्पीड़न से रोकने के बीच निरंतर तनाव को उजागर करता है।
- यह कानून के ढांचे के भीतर इन हितों को संतुलित करने की जटिलताओं और चुनौतियों को रेखांकित करता है।
इस प्रकार, गोवा की सरकार का सर्कुलर कोर्ट के आदेश द्वारा खारिज कर दिया गया, जिससे स्पष्ट होता है कि धारा 52(1)(za) की व्याख्या न्यायपालिका के हाथ में ही होनी चाहिए और कार्यपालिका को कानून के दायरे का विस्तार करने की अनुमति नहीं है।