इलाहाबाद उच्च न्यायालय के निर्णय का बिंदुवार विश्लेषण दिया गया है:
- मामले की सुनवाई: न्यायमूर्ति राज बीर सिंह की अध्यक्षता में इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने मामले की सुनवाई की। इसमें आवेदक आदर्श यादव द्वारा दायर 482 Cr.P.C. की याचिका पर बहस की गई।
- आवेदक का पक्ष: आवेदक के वकीलों (दुर्गेश कुमार सिंह, ज्योति प्रकाश, और ऋषभ नारायण सिंह) ने तर्क दिया कि मृतका ने पहले रोहित यादव से शादी की थी और उसके बाद तलाक नहीं लिया था, इसलिए मृतका कानूनी रूप से आवेदक की पत्नी नहीं थी। इस आधार पर, उन्होंने दावा किया कि धारा 304-B (दहेज हत्या) के आरोप उन पर लागू नहीं होते।
- राज्य का पक्ष: राज्य के वकील ने दलील दी कि FIR में स्पष्ट रूप से उल्लेख है कि मृतका और आवेदक ने अदालत के माध्यम से विवाह किया था और आवेदक ने दहेज के लिए मृतका का उत्पीड़न किया था। साथ ही, यह तर्क दिया गया कि विवाह की वैधता का प्रश्न एक तथ्यात्मक प्रश्न है जिसे केवल ट्रायल के दौरान ही तय किया जा सकता है।
- अदालत का दृष्टिकोण: अदालत ने यह स्वीकार किया कि धारा 482 Cr.P.C. के तहत वर्तमान कार्यवाही में विवाह की वैधता का निर्णय नहीं किया जा सकता। कोर्ट ने यह भी कहा कि ट्रायल कोर्ट को इस मामले में एक मिनी ट्रायल नहीं करना चाहिए, बल्कि यह देखना चाहिए कि क्या आवेदक के खिलाफ प्राथमिक दृष्टिगत सबूत हैं या नहीं।
- रीमा अग्रवाल बनाम अनुपम (2004) मामला: इस मामले में सुप्रीम कोर्ट के निर्णय का हवाला देते हुए न्यायालय ने कहा कि धारा 304-B और 498-A IPC के प्रावधानों के तहत पति-पत्नी के संबंधों का आधार पर्याप्त है, भले ही विवाह कानूनी रूप से वैध न हो। इस प्रकार, लिव-इन संबंधों में भी दहेज उत्पीड़न के आरोप लगाए जा सकते हैं।
- छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय का दृष्टिकोण: छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय के मोहितराम बनाम छत्तीसगढ़ राज्य मामले का हवाला देते हुए कहा गया कि धारा 304-B IPC का उद्देश्य दहेज हत्या के लिए जिम्मेदार पति और उसके रिश्तेदारों को दंडित करना है, चाहे विवाह वैध हो या नहीं।
- अंतिम निर्णय: अदालत ने यह निष्कर्ष निकाला कि आवेदक के खिलाफ धारा 304-B IPC के आरोप लागू होते हैं, और ट्रायल कोर्ट द्वारा आवेदक की डिस्चार्ज याचिका को खारिज करना सही था। न्यायालय ने कहा कि कोई कानूनी त्रुटि या असंगति नहीं पाई गई जिससे उच्च न्यायालय को हस्तक्षेप करना पड़े।
- याचिका का खारिज होना: न्यायालय ने 482 Cr.P.C. के तहत दायर याचिका को खारिज कर दिया और आवेदक के खिलाफ मुकदमे को जारी रखने का आदेश दिया।
इस प्रकार, अदालत ने यह निर्णय दिया कि लिव-इन संबंधों में भी दहेज उत्पीड़न और हत्या के आरोप लागू हो सकते हैं, भले ही विवाह कानूनी रूप से वैध न हो।