विवाद का मुद्दा: पिता की संपत्ति में बेटियों का अधिकार एक विवादास्पद विषय रहा है, खासकर तब जब पुत्रों को प्राथमिकता दी जाती है और बेटियों को संपत्ति से वंचित रखा जाता है।
अलग-अलग धर्मों के अलग कानून: संपत्ति के विभाजन को लेकर अलग-अलग धर्मों के अपने कानून हैं, जैसे हिंदुओं के लिए हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम, 1956, और मुसलमानों के लिए मुस्लिम पर्सनल लॉ।
स्वयं अर्जित संपत्ति: अगर कोई व्यक्ति अपनी संपत्ति स्वयं अर्जित करता है, तो उसे अधिकार है कि वह अपनी संपत्ति के संबंध में फैसला ले। उस पर बेटे या बेटी का कोई अधिकार नहीं होता है, जब तक वह मृत्यु के समय कोई व्यवस्था न कर जाए।
पैतृक संपत्ति: पैतृक संपत्ति वह होती है जो पीढ़ी दर पीढ़ी चली आ रही होती है। इसके मामले में बेटियों को भी अब अधिकार प्राप्त है, खासकर 2005 के बाद किए गए संशोधन के तहत।
हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम (1956): इस कानून के तहत बेटा और बेटी दोनों को पिता की संपत्ति में समान अधिकार मिलता है, भले ही बेटी की शादी हो चुकी हो।
वसीयत का प्रभाव: अगर पिता अपनी संपत्ति की वसीयत बेटों के नाम कर दे और बेटियों को वंचित कर दे, तो बेटियों को कोई अधिकार नहीं मिलता, जब तक कि वह पैतृक संपत्ति न हो।
मुस्लिम लॉ: मुस्लिम कानून में बेटियों का अधिकार बेटों की तुलना में कम है, लेकिन भारतीय न्यायालयें इसे सुधारने की दिशा में काम कर रही हैं, और बेटियों को समान अधिकार दिलाने की कोशिशें की जा रही हैं।
उत्तराधिकार से वंचित होने की स्थिति: कुछ परिस्थितियों में बेटियों को संपत्ति में अधिकार नहीं मिलता, जैसे कि अगर वह अपने अधिकार का त्याग कर चुकी हो या संपत्ति पर कोई रिलीज डीड साइन कर चुकी हो।
समाज में भ्रांतियां: समाज में यह भ्रांति है कि अगर बेटी परिवार की इच्छा के विरुद्ध जाकर शादी करती है, या किसी अपराध में शामिल होती है, तो उसका संपत्ति में अधिकार खत्म हो जाता है। यह मान्यता गलत है।
पैतृक संपत्ति में सीमाएं: पैतृक संपत्ति के मामले में दूसरी और तीसरी पीढ़ी के बाद बेटियों के अधिकार कम हो सकते हैं, लेकिन नए कानूनों के तहत यह स्थिति भी सुधारी जा रही है।