भारतीय कानून के अनुसार, बेटे और बेटियों को उनके पिता की संपत्ति पर विवाद होने पर अधिकार होते हैं। उनके अधिकार की गणना उनकी विवाहित स्थिति, पिता की जीवित या मृत अवस्था, उनकी जन्म तिथि और उनकी आर्थिक स्थिति आदि के आधार पर की जाती है।
अगर बेटे या बेटी को उनके पिता की संपत्ति पर कोई अधिकार होता है, तो यह अधिकार उनकी शेयरिंग (विभाजन) के द्वारा निर्धारित किया जाता है। अधिकार की गणना करते समय उनकी विवाहित स्थिति, पिता की मृत्यु के बाद वह कैसे वसीयत के रूप में शामिल होते हैं, उनकी जन्म तिथि और उनकी आर्थिक स्थिति आदि का ध्यान रखा जाता है।
उसके अलावा, हिंदू विवाह अधिनियम के तहत, बेटी विवाह के बाद अपने पिता की संपत्ति का एक शेयर प्राप्त कर सकती है। इसके अलावा, बेटी को दाम्पत्य तलाक के बाद अपने पिता की संपत्ति का एक शेयर प्राप्त होता है।
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1 स्वयं अर्जित संपत्ति ऐसी संपत्ति व्यक्ति स्वयं अर्जित करता है। अब भले इस संपत्ति को अपने कमाए रुपए से ख़रीदा हो या फिर उस व्यक्ति को किसी व्यापारिक विभाजन में ऐसी संपत्ति प्राप्त हुई हो या फिर ऐसी संपत्ति उस व्यक्ति को दान में प्राप्त हुई हो। इन सभी संपत्तियों को स्वयं अर्जित संपत्ति कहा जाता है।
2 उत्तराधिकार या वसीयत में प्राप्त संपत्ति उत्तराधिकार या वसीयत में प्राप्त संपत्ति भी एक प्रकार से व्यक्ति की स्वयं अर्जित संपत्ति ही है। क्योंकि उत्तराधिकार व्यक्ति को नैसर्गिक रूप से मिलता है और वसीयत भी उसे वसीयतकर्ता के साथ उसके मृदुल स्वभाव के कारण मिलती है।
3 पैतृक संपत्ति यह संपत्ति ऐसी संपत्ति होती है जो तीन पीढ़ियों के बाद होतीं हैं। तीन पीढ़ी पहले की संपत्ति पैतृक संपत्ति हो जाती है। आजकल ऐसी संपत्तियां कम हैं लेकिन पुराने संयुक्त परिवारों के पास आज भी ऐसी संपत्तियां उपलब्ध है। पिता की संपत्ति पर बच्चों का अधिकार आमतौर पर यह समझा जाता है कि किसी भी जीवित पिता की संपत्ति पर बच्चों का अन्यय अधिकार है जबकि यह धारणा ग़लत है। यदि किसी व्यक्ति के पास उसकी स्वयं अर्जित संपत्ति है जिसमें उसे उसके पिता माता या अन्य रिश्तेदार से उत्तराधिकार में मिली संपत्ति और वसीयत के मार्फ़त मिली संपत्ति भी शामिल है तब बच्चों का उस जीवित व्यक्ति की संपत्ति पर कोई भी अधिकार नहीं होता है। यदि वह पिता की संपत्ति को इस्तेमाल कर भी रहें हैं तो यह पिता का बड़प्पन है कि उसने अपनी वयस्क संतानों को संपत्ति का इस्तेमाल करने से रोका नहीं है अन्यथा एक पिता के पास यह अधिकार है कि वह अपनी संतानों को अपनी संपत्ति से निकाल दे।
संतानें किसी भी सूरत में पिता या माता किसी भी संपत्ति में कोई दखल नहीं कर सकती हैं और न ही उस संपत्ति पर दावा कर सकतीं हैं। यदि किसी व्यक्ति को ऐसी संपत्ति अपने पिता के मरने के बाद उत्तराधिकार में प्राप्त हुई है तब भी उस व्यक्ति की संतानें इस आधार पर दावा नहीं कर सकतीं कि संपत्ति उनके दादा की है, क्योंकि संपत्ति पर सबसे पहला अधिकार किसी भी व्यक्ति के उसके जीवित पुत्र पुत्री और पत्नी का है। पोती या पोते इस आधार पर दावा नहीं कर सकतें कि संपत्ति उनके दादा की है, पिता के जीवित रहते पोता पोती का दादा की संपत्ति पर कोई अधिकार नहीं है। पति के जीवित रहते बहु के पास भी ऐसा कोई अधिकार नहीं है। पैतृक संपत्ति पैतृक संपत्ति पर ज़रूर संतानों और पत्नी का अधिकार होता है। क्योंकि यह संपत्ति पिछली तीन पीढ़ियों से चली आ रही होती है। ऐसी संपत्ति को किसी व्यक्ति की अर्जित संपत्ति नहीं माना गया है। यदि किसी व्यक्ति के पास ऐसी संपत्ति है तब उसकी संतानें ऐसी संपत्ति पर क्लेम कर सकतीं हैं और पिता अपनी संतानों को ऐसी संपत्ति से बेदखल भी नहीं कर सकता है।