घरेलू हिंसा की परिभाषा:

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  • घरेलू हिंसा घराने में होने वाली हिंसा को सूचित करती है, जिसमें किसी महिला का शारीरिक, मानसिक, भावनात्मक, मौखिक, मनोवैज्ञानिक, या यौन शोषण होता है, जिसे उसके परिवार से किसी व्यक्ति द्वारा किया जाता है।

घरेलू हिंसा के कानूनी परिभाषा (महिला संरक्षण अधिनियम, 2005):

  • इस कानून की परिभाषा के अनुसार, घरेलू हिंसा ऐसे प्रतिवादी के द्वारा किये गए किसी भी कार्य को सूचित करता है जो महिला के स्वास्थ्य, जीवन, अंगों, या सामाजिक तौर पर उसके हित को खतरे में डालता है। इसमें शारीरिक, यौन, मौखिक, भावनात्मक, और आर्थिक शोषण शामिल होता है, साथ ही इसमें ऐसे शोषण की धमकियाँ भी शामिल हो सकती हैं।

घरेलू हिंसा शिकायतों की निर्धारण:

  • किसी व्यवहार या आचरण का यह निर्धारण किया जाता है कि वह घरेलू हिंसा की परिभाषा में आता है या नहीं, इसे हर मामले के विशिष्ट तथ्यों पर आधारित किया जाता है।

व्यथित व्यक्ति की परिभाषा:

  • इस कानून के तहत ‘व्यथित व्यक्ति’ या पीड़ित व्यक्ति उन महिलाओं को सम्मिलित करता है जिन्हें उनके परिवारिक या घरेलू संबंधों के साथ किसी के द्वारा दुर्व्यवहार का सामना करना पड़ता है।

शामिल किए जाने वाले संबंध:

  • घरेलू संबंध रक्त संबंध (मां-बेटा, पिता-पुत्री आदि), विवाहित संबंध (पति-पत्नी, सास-बहू, देवर-भाभी आदि), दत्तक संबंध, लिव-इन संबंध, गोदलेने से उत्पन्न संबंध आदि को शामिल करते हैं।

पीड़ित व्यक्ति के अधिकार:

  • पीड़ित व्यक्ति के पास इस कानून के तहत विभिन्न राहतों के लिए आवेदन करने का अधिकार होता है, जैसे संरक्षण आदेश, आर्थिक सहायता, बच्चों की अस्थायी कस्टडी का आदेश, निवास का आदेश।
  • पीड़ित व्यक्ति आधिकारिक सेवा प्रदाताओं, संरक्षण अधिकारियों, या पुलिस से सहायता मांग सकती है।
  • पीड़ित व्यक्ति को मुफ्त कानूनी सहायता की मांग करने का अधिकार होता है और आवश्यकता पड़ने पर भारतीय दंड संहिता (IPC) के तहत आपराधिक याचिका दाखिल कर सकती है।
  • पीड़ित की सुरक्षा और चिकित्सा सहायता की प्रदान करने की जिम्मेदारी राज्य पर होती है।

ये बिंदुआत घरेलू हिंसा और उससे संबंधित कानूनी ढांचे के मुख्य अवधारणाओं को समाहित करते हैं।

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“घरेलू हिंसा से महिला संरक्षण अधिनियम, 2006” के प्रमुख धाराओं और नियमों की एक संक्षिप्त सारांश दिया गया है:

  • धारा 4: इस धारा के तहत, यदि कोई व्यक्ति घरेलू हिंसा के बारे में जानकारी संरक्षण अधिकारी को देता है, तो उसे किसी प्रकार की जिम्मेदारी नहीं होती। यहाँ पर सुरक्षा अधिकारी से संपर्क करने का माध्यम बताया गया है।
  • धारा 5: यदि किसी पुलिस अधिकारी, संरक्षण अधिकारी या मजिस्ट्रेट को घरेलू हिंसा की सूचना दी जाती है, तो उन्हें पीड़िता को विभिन्न सेवाओं के बारे में सूचित करनी होती है।
  • धारा 10: यह धारा बताती है कि नियमित तौर पर पंजीकृत सेवा प्रदाता भी घरेलू हिंसा की सूचना संरक्षण अधिकारी या मजिस्ट्रेट को दे सकता है।
  • धारा 12: इस धारा के तहत, पीड़िता को मजिस्ट्रेट के पास आवेदन देने का अधिकार होता है, जिसमें उसे हिंसा के बारे में सूचना देनी होती है।
  • धारा 14: यदि पीड़िता चाहे, तो वह सेवा प्रदाता से परामर्श ले सकती है, जिससे उसकी सहायता की जा सके।
  • धारा 16: यह धारा बताती है कि पक्षकार की इच्छा पर कार्रवाई बंद कमरे में भी हो सकती है।
  • धारा 17 और 18: इन धाराओं के अंतर्गत, पीड़िता के पक्ष में संरक्षण आदेश पारित किया जा सकता है और उसे साझी गृहस्थी में रहने का अधिकार होता है।
  • धारा 19: इस धारा के तहत, संरक्षण आदेश के साथ स्थानीय थाना को निदेश दिया जा सकता है जिससे पीड़िता को आवश्यक सुरक्षा प्रदान की जा सके।
  • धारा 20 और 22: यदि पीड़िता के खर्च और हानि की पूर्ति की आवश्यकता होती है, तो मजिस्ट्रेट उन्हें वित्तीय सहायता प्रदान करने का निर्णय ले सकते हैं।
  • धारा 21: यदि आवश्यकता होती है, तो मजिस्ट्रेट संरक्षण आदेश के साथ संतान से मिलने का भी आदेश दे सकते हैं।
  • धारा 24: पक्षकारों को आदेश की प्रति निःशुल्क न्यायालय द्वारा दी जाएगी।

यह सभी प्रमुख धाराएँ और नियम घरेलू हिंसा से महिलाओं की सुरक्षा में मदद करने के लिए हैं।

“घरेलू हिंसा (अधिनियम) 2005” अधिनियम के तहत, घरेलू हिंसा की शिकायत दर्ज करने का हक किसी भी व्यक्ति को है, चाहे वह पीड़ित व्यक्ति हो या फिर उसके पास घटित होने की जानकारी हो।

इस अधिनियम के तहत, निम्नलिखित व्यक्तियाँ घरेलू हिंसा की शिकायत कर सकती हैं:

  • पत्नियाँ या लाइव-इन पार्टनर्स
  • बहनें
  • माताएँ
  • बेटियाँ

यह अधिनियम उन सभी स्त्रियों को सुरक्षा देने का मकसद रखता है जो परिवारिक ढांचे में हैं, चाहे वे सगे संबंधी हों या विवाह, दत्तक आदि के साथ में रह रही हों।

यदि कोई व्यक्ति घरेलू हिंसा की शिकायत दर्ज कराना चाहता है, तो उसे स्थानीय पुलिस स्थान या महिला थाना में जाकर अपनी शिकायत दर्ज करवानी चाहिए। इसके लिए व्यक्ति को अपने पास पीड़ित व्यक्ति की जानकारी, घटना का विवरण, आरोपी की जानकारी आदि की जानकारी होनी चाहिए।

यदि आपके पास घरेलू हिंसा की शिकायत हो और आप सहायता चाहते हैं, तो आपको स्थानीय पुलिस अथवा महिला हेल्पलाइन से संपर्क करना चाहिए।

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आपने बताया है कि घरेलू हिंसा की घटनाओं की रिपोर्ट दर्ज करने और पीड़ित व्यक्तियों का सहायता प्रदान करने के लिए भारतीय कानून के तहत कई तरह के उपाय और विधियाँ हैं। यहाँ, संक्षेप दिया गया है:

  1. रिपोर्ट दर्ज करने की प्रक्रिया:
  1. पीड़ित व्यक्ति को घरेलू हिंसा की घटना की रिपोर्ट दर्ज करने की स्थानीय पुलिस थाने में जानी चाहिए।
  2. रिपोर्ट के लिए घरेलू हिंसा के विरुद्ध संरक्षण नियम, 2006 के फॉर्म 1 का प्रयोग किया जा सकता है।
  1. रिपोर्ट में आवश्यक जानकारी:
  1. पीड़ित व्यक्ति की व्यक्तिगत जानकारियों का विवरण, जैसे कि नाम, आयु, पता, फोन नंबर आदि।
  2. घरेलू हिंसा की घटना का विस्तृत ब्यौरा और प्रतिवादी की जानकारी।
  3. चिकित्सकीय दस्तावेज, डॉक्टर के निर्देश, स्त्रीधन की सूची आदि, जैसे संबंधित दस्तावेजों को रिपोर्ट के साथ सम्मिलित करना।
  1. रिपोर्ट की प्रस्तावना:
  1. पीड़ित व्यक्ति को मिली सहायता या राहत की जानकारी रिपोर्ट में उल्लेख करनी चाहिए।
  2. पीड़ित व्यक्ति और सुरक्षा अधिकारी के हस्ताक्षर रिपोर्ट पर होने चाहिए।
  1. महिलाओं का सरंक्षण तहत सहायता:
  1. घरेलू हिंसा अधिनियम, 2005 के तहत महिलाओं को विभिन्न सहायता प्रदान की जा सकती है।
  2. यह सहायता आरोपी के खिलाफ कार्यवाही और मदद के रूप में हो सकती है।
  1. मजिस्ट्रेट के द्वारा कई प्रावधानें:
  1. मजिस्ट्रेट प्रतिवादी को परामर्श के लिए भेज सकता है और सहायता के लिए सामाजिक कार्यकर्त्ता या महिला को नियुक्त कर सकता है।
  2. कार्यवाही के दौरान कैमरे का प्रयोग का आदेश भी जारी किया जा सकता है।
  1. पुलिस अधिकारी के द्वारा कार्येक्षमताएं:
  1. पुलिस अधिकारी को घरेलू हिंसा की जानकारी मिलते ही उसकी जाँच करनी चाहिए।
  2. पीड़िता को नि:शुल्क विधि सेवाओं के बारे में जानकारी देनी चाहिए और आवश्यकता होने पर सहायता प्रदान करनी चाहिए।
  3. सुरक्षा अधिकारियों और सेवा प्रदाताओं की सेवाएं भी प्रदान करनी चाहिए।
  1. कार्यरत संस्थाएं और सहायता:
  1. विधिक सेवाएं प्रदान करने के लिए कार्यरत संस्थाएं नियुक्त की गई हैं जो पीड़िता को उपयुक्त जानकारी और सहायता प्रदान कर सकती हैं।
  1. परिवार कल्याण में मजिस्ट्रेट की भूमिका:
  1. मजिस्ट्रेट परिवार कल्याण में सामाजिक कार्यकर्त्ता या महिला को सहायता के लिए नियुक्त कर सकता है।
  1. पुलिस अधिकारी के द्वारा आरोपी के खिलाफ कार्रवाई:
  1. पुलिस अधिकारी को आरोपी के खिलाफ आपराधिक मामला दर्ज करने का अधिकार होता है, जब जरूरी होता है।
  2. पत्नी केवल अपने पति या परिजनों के खिलाफ आरोपित कर सकती है धारा 498-A के तहत।

यह सभी प्रक्रियाएँ और उपाय घरेलू हिंसा के पीड़ित व्यक्तियों को सहायता प्रदान करने के लिए हैं और इन्हें ध्यान में रखकर वे अपने अधिकारों का उपयोग कर सकते हैं।

सुरक्षा अधिकारी (धारा 9):

  • सुरक्षा अधिकारियों का महत्वपूर्ण काम होता है पीड़िता की मदद करना और घरेलू हिंसा मामलों में सहायता प्रदान करना।
  • वे पीड़िता की रिपोर्ट को सही ढंग से दर्ज करने में मदद करते हैं और उन्हें आवेदन पत्र लिखने में सहायता प्रदान करते हैं।
  • उनका उद्देश्य पीड़िता के अधिकारों की जानकारी और सहायता प्रदान करना होता है।
  • वे पीड़िता के हित में घरेलू हिंसा मामलों को समाधान के लिए मजिस्ट्रेट की सहायता करते हैं।

सेवा प्रदाता (धारा 10):

  • सेवा प्रदाता स्वैच्छिक संगठन होते हैं जो महिलाओं के अधिकारों और हितों की सुरक्षा के लिए बनाए गए होते हैं।
  • इन संगठनों का काम निरोधात्मक, सुरक्षात्मक और पुनर्वास का होता है।
  • वे पीड़िता को कानूनी, सामाजिक, चिकित्सकीय और आर्थिक सहायता प्रदान करने में उत्तरदायी होते हैं।
  • इन संगठनों की मदद से पीड़िता शिकायत को दर्ज करवा सकती है और सम्बद्ध अधिकारियों को भेज सकती है।

परामर्शदाता (धारा 14):

  • परामर्शदाता सदस्य होते हैं जो घरेलू हिंसा मामलों के परामर्श के लिए योग्य और अनुभवी होते हैं।
  • मजिस्ट्रेट के द्वारा पीड़िता या दोषी को परामर्श की आवश्यकता होने पर उन्हें सहायता प्रदान करने के लिए निर्देश जारी किए जा सकते हैं।
  • उनका उद्देश्य पीड़ित व्यक्ति को उन्मूलन के उपायों की सलाह देना और समझौते की प्रक्रिया में मदद करना होता है।

कल्याण विशेषज्ञ (धारा 15):

  • कल्याण विशेषज्ञ परिवारिक मामलों को सुलझाने में दक्षता और विशेषज्ञता प्राप्त व्यक्ति होते हैं।
  • मजिस्ट्रेट के निर्देशानुसार उन्हें घरेलू हिंसा मामलों में सहायता प्रदान करने का काम होता है।

आश्रय और चिकित्सा सुविधा प्रभारी (धारा 6 और 7):

  • इन अधिकारियों का काम होता है पीड़िता को आश्रय और चिकित्सा सुविधा प्रदान करवाना जब उन्हें इसकी आवश्यकता होती है।

यह सुचना आपको धाराओं के अनुसार सुरक्षा अधिकारियों, सेवा प्रदाताओं, परामर्शदाताओं, कल्याण विशेषज्ञों और आश्रय और चिकित्सा सुविधा प्रभारियों की भूमिकाओं और कार्यों को संक्षेपित रूप में प्रस्तुत करती है।

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