“क्या निजी वाहन पर “पुलिस” लिखना गैर-आवश्यक या अपराध है? हाईकोर्ट का निर्णय”

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शिकायत के बाद, कलकत्ता हाईकोर्ट ने एक पुलिस अधिकारी के खिलाफ दायर एक मामला खारिज किया है, जो अपने निजी वाहन पर ‘पुलिस’ शब्द प्रदर्शित करने के लिए आरोपित थे। न्यायमूर्ति बिबेक चौधरी की पीठ ने फैसला सुनाया जिसमें उन्होंने बताया कि प्रदर्शन ने आईपीसी के तहत किसी भी दंडात्मक प्रावधान का उल्लंघन नहीं किया। इस मामले का फैसला अलीपुर में 9वीं अदालत के न्यायिक मजिस्ट्रेट के सामने सुनाया गया था, जिसने एक निजी वाहन को उसके सामने और पीछे की स्क्रीन पर “पुलिस” शब्द लिखा हुआ देखा था।

यह एक गंभीर अनुशंसा है कि जनता को धोखा दिए जाने से बचाने के लिए, सार्वजनिक वाहनों पर सही जानकारी लिखना चाहिए। इससे लोगों को सही जानकारी मिलेगी और उन्हें अपने अधिकारों का ज्ञान होगा। इससे अवैध लाभ लेने वालों को रोका जा सकता है। इस तरह की स्थितियों से बचने के लिए, संबंधित विभागों को भी समय-समय पर सतर्क रहना चाहिए।

यद्यपि आपके द्वारा बताई गई तथ्यों से यह स्पष्ट नहीं होता कि याचिकाकर्ता द्वारा वाहन को बतौर पुलिस वाहन दिखाने का उद्देश्य क्या था, हालांकि अगर इस आरोप की सत्यता साबित होती है तो इसका वास्तविक अर्थ होगा कि याचिकाकर्ता ने अपने उद्देश्यों के लिए अवैध तरीके से वाहन का उपयोग किया और इससे वाहन के पंजीकृत मालिक और सामान्य लोगों को नुकसान हुआ हो सकता है। अगर इस आरोप का सत्यापन होता है तो याचिकाकर्ता के खिलाफ कानूनी कार्रवाई की जा सकती है।

इसका अर्थ है कि शिकायतकर्ता द्वारा दायर की गई शिकायत के आधार पर, अतिरिक्त मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट ने सीआरपीसी की धारा 190 (1) (ए) के तहत अपराध का संज्ञान लिया और मामले को न्यायिक मजिस्ट्रेट को सौंप दिया। इसके बाद, मजिस्ट्रेट ने याचिकाकर्ता के खिलाफ आईपीसी के विभिन्न प्रावधानों के तहत प्रक्रिया जारी की है। अलीपुर में 9वीं अदालत में शिकायतकर्ता की परीक्षा के लिए निर्धारित तिथि 21 नवंबर 2022 है।

न्यायिक अधिकारी द्वारा वाहन का उपयोग करने की संबंधित नीतियों और अनुमतियों का पालन करना चाहिए। इस मामले में, याचिकाकर्ता द्वारा वाहन का उपयोग संबंधित नीतियों के तहत किया गया था या नहीं, इस बात की जांच की जानी चाहिए। उसके अलावा, व्यक्तिगत उद्देश्यों के लिए वाहन का उपयोग करना न्यायिक अधिकारियों की संबंधित नीतियों में से नहीं है और इसे रोका जाना चाहिए। हाईकोर्ट के नोटिस के बाद, यह भी साबित होता है कि न्यायिक अधिकारियों की व्यक्तिगत वाहनों में अपने पदनाम और कार्यालय के नाम आदि का अंधाधुंध उपयोग करना अपनी वाहनों में एक आम प्रथा है।

यह एक संबंधित न्याय मामला लगता है जहां न्यायाधीश ने याचिकाकर्ता के खिलाफ लंबित शिकायत मामले को रद्द कर दिया है। याचिकाकर्ता द्वारा विशेष रूप से लगाया गया आरोप था कि उसने अपने वाहन को नो-पार्किंग क्षेत्र में पार्क किया था, जो मोटर वाहन अधिनियम के तहत दंडनीय है। न्यायमूर्ति चौधरी ने बताया कि याचिकाकर्ता के खिलाफ किसी विशिष्ट कार्य की शिकायत नहीं की गई है जो दंड संहिता के तहत अपराध के अर्थ में आ सकता है। अदालत ने यह भी कहा कि याचिकाकर्ता के खिलाफ केवल संदेह के आधार पर शिकायत दर्ज की गई थी और विद्वान मजिस्ट्रेट इस बात पर विचार करने में विफल रहे कि यह आशंका कि कोई व्यक्ति अपराध कर सकता है, आरोप का आधार नहीं हो सकता है। इसलिए अदालत ने याचिकाकर्ता के खिलाफ लंबित शिकायत मामले को रद्द कर दिया। याचिकाकर्ता को रुपये 600 का जुर्माना भी भुगतना पड़ा होगा।

केस का शीर्षक:- श्री. संजीब चक्रवर्ती वि. श्री। सुबीर रंजन चक्रवर्ती और अन्य।

केस नंबर: आईए नंबर सीआरएएन/1/2023 2023 के सीआरआर 322 में

बेंच: जस्टिस बिबेक चौधरी

आदेश दिनांक: 04.05.2023

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