इलाहाबाद हाईकोर्ट ने दिया निर्णय –  क्या भारतीय दण्ड संहिता (IPC) की धारा 376 और POCSO अधिनियम के तहत एक अपराध को समझौते के आधार पर रद्द किया जा सकता है?

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हाल ही में, इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण प्रश्न का उत्तर दिया कि क्या समझौते के आधार पर धारा 376 I.P.C. और POCSO एक्ट को रद्द किया जा सकता है।

न्यायमूर्ति अरुण कुमार सिंह देशवाल की खंडपीठ चार्जशीट के संबंध में, संज्ञान आदेश दिनांक 10.2.2017 और गैर-जमानती वारंट दिनांक 10.5.2022 को रद्द करने के लिए एक आवेदन दायर किया गया था। इस आवेदन के तहत धारा 363, 366, 376(2N), 506 I.P.C. और पॉक्सो एक्ट के तहत दर्ज मामले से उत्पन्न हुई सभी कार्रवाही पर विचार किया जा रहा था। यह मामला न्यायमूर्ति द्वारा मान्यता प्राप्त किया गया था और उन्हें इस मामले की पूरी कार्रवाही के प्रति विचार करने का दायित्व था।

इस मामले में, श्री एस.के. तिवारी आवेदक के वकील द्वारा बयान में सीआरपीसी की धारा 164 के तहत यह दावा किया गया कि पीड़िता ने स्वेच्छा से आवेदक से शादी की है और वे अब उसकी पत्नी के रूप में उसके साथ रह रही हैं। इसके पश्चात, इस मामले को लेकर दोनों पक्षों के बीच समझौता भी हो गया है, क्योंकि पीड़िता और आवेदक दोनों पति-पत्नी के रूप में रह रहे हैं और पीड़िता की आयु भी मेडिकल जांच के अनुसार 18 वर्ष से अधिक है।

न्यायालय ने निचली अदालत को पक्षकारों के बीच हुए समझौते को सत्यापित करने का निर्देश दिया है। इसके पश्चात, न्यायालय के आदेश के अनुपालन में पक्षकारों के बीच समझौता अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश/विशेष न्यायाधीश (पॉक्सो अधिनियम) द्वारा सत्यापित किया गया है।

बेंच के सामने यह था मुद्दा:

क्या समझौते के आधार पर, धारा 376 I.P.C के तहत अपराध। और POCSO एक्ट को रद्द किया जा सकता है?

पीठ ने यूपी राज्य के मामले का उल्लेख किया है और उसने देखा है कि पीड़ित लड़की के बयान के आधार पर मामला बन गया है। इसके अनुसार, पीड़िता और अभियुक्त के बीच समझौते के आधार पर POCSO अधिनियम के तहत कार्यवाही को रद्द नहीं किया जा सकता है। POCSO अधिनियम सामाजिक सुरक्षा के लिए बनाया गया है और यह बाल अपराध के खिलाफ सख्ती से लड़ने का उद्देश्य रखता है। इसलिए, यदि POCSO अधिनियम के तहत अपराध किया गया है, तो समझौते के आधार पर कार्यवाही को रद्द नहीं किया जा सकता है।

अपराधी बनाम पीड़िता ने उसके बयान को धारा 164 के अनुसार विचार करने के बाद, राजस्थान हाईकोर्ट की एकल पीठ ने POCSO अधिनियम के तहत चल रहे कार्यवाही को रद्द करने का निर्णय लिया। पीड़िता ने अपने बयान में कहा है कि अभियुक्त ने कोई अपराध नहीं किया था और वह स्वेच्छा से उसके घर छोड़कर उससे शादी करने के लिए गई थी। इस जानकारी के आधार पर, हाईकोर्ट ने पीड़िता के बयान की विश्वसनीयता को स्वीकार किया और कार्यवाही को रद्द कर दिया, जिससे स्पष्ट होता है कि पीड़िता द्वारा उठाए गए आरोपों पर अपराधी के खिलाफ कोई कानूनी कार्रवाई नहीं की जाएगी।

पीठ ने यह दर्शाया कि POCSO अधिनियम के तहत मामला नहीं बनता है, क्योंकि धारा 2(1)(d) स्पष्ट रूप से एक ऐसे बच्चे की परिभाषा करती है जिसकी आयु 18 वर्ष से कम होती है। रिकॉर्ड पर उपलब्ध सामग्री से पता चलता है कि पीड़िता 18 वर्ष से ऊपर है, इसलिए POCSO अधिनियम के तहत कोई मामला नहीं बनता है। पीड़िता ने भी धारा 164 Cr.P.C के तहत यह कहा है कि अभियुक्त ने उसके खिलाफ कोई यौन अपराध नहीं किया है और वे पति-पत्नी के रूप में रह रहे हैं। उसकी माँ ने केवल पैसे वसूलने के लिए झूठे आरोप दर्ज करवाए हैं। मेडिकल जांच में भी कोई चोट नहीं मिली और पीड़िता के खिलाफ यौन उत्पीड़न के बारे में कोई राय नहीं दी गई। इसलिए रिकॉर्ड के आधार पर यह स्पष्ट है कि अभियुक्त के खिलाफ कोई अपराध नहीं हुआ है। आवेदक के विरुद्ध धारा 363, 366, 376 के तहत आरोप पत्र दाखिल करना, 2एन, 506 आई.पी.सी. और पॉक्सो अधिनियम की धारा 6 द्वारा कार्यवाही गलत थी।

उच्च न्यायालय ने कहा कि प्रक्रिया POCSO अधिनियम और भारतीय दण्ड संहिता (IPC) की धारा 376 के तहत चलाई जानी चाहिए। अगर उपलब्ध साक्ष्यों के आधार पर कोई मामला स्थापित नहीं होता है, लेकिन पुलिस ने संग्रहित साक्ष्यों सामग्री को देखे बिना एक नियमित तरीके से आरोप पत्र दायर किया है, तो उसे रद्द किया जा सकता है।

उपरोक्त के मद्देनजर, खंडपीठ ने आवेदन की अनुमति दी।

केस का शीर्षक: फकरे आलम @ शोज़िल बनाम यूपी राज्य और 3 अन्य

बेंच: जस्टिस अरुण कुमार सिंह देशवाल

केस नंबर: आवेदन धारा 482 संख्या – 41580 के तहत 2022

आवेदक के वकील: श्री एस.के. तिवारी

विपक्षी के वकील : श्री जितेंद्र सिंह

Please read actual case-

Read order/judgement:-

Neutral Citation No. – 2023:AHC:124719
A.F.R.
Court No. – 85
Case :- APPLICATION U/S 482 No. – 41580 of 2022
Applicant :- Fakre Alam @ Shozil
Opposite Party :- State Of U.P. And 3 Others
Counsel for Applicant :- Sudhir Kumar Tiwari
Counsel for Opposite Party :- G.A.,Jitendra Singh
Hon’ble Arun Kumar Singh Deshwal,J.

  1. Heard Sri S.K. Tiwari, learned counsel for the applicant, Sri Jitendra Singh,
    learned counsel for O.P. No.2 as well as learned A.G.A. for the State.
  2. The present 482 Cr.P.C. application has been filed to quash charge sheet dated
    25.9.2016, cognizance order dated 10.2.2017, non-bailable warrant dated 10.5.2022
    and entire proceeding of Case No. 294 of 2021 (State vs. Fakre Alam) arising out of
    Case Crime No. 330 of 2015, u/s 363, 366, 376(2N), 506 I.P.C. and 6 POCSO Act,
    P.S. Baradari, District Bareilly.
  3. Contention of learned counsel for the applicant is that in her statement u/s 164
    Cr.P.C., the victim has stated that she had willingly married to the applicant and she
    has been residing with him as his wife. Thereafter, compromise was also entered
    between the parties regarding this case because victim as well as applicant have
    been residing as husband and wife and age of the victim is also above 18 years as
    per the medical examination.
  4. This Court vide order dated 28.1.2023 directed the court below to verify the
    compromise entered between the parties. In pursuance of the order of this Court,
    compromise between the parties has been verified by Additional Sessions
    Judge/Special Judge (POCSO Act), Court No.1, Bareilly in Special Criminal Case
    No. 294 of 2021 (State vs. Fakre Alam) vide order dated 24.5.2023 which has been
    produced before this Court along second supplementary affidavit dated 30.5.2023,
    filed by counsel for the applicant. Here the sole question arises as to whether on the
    basis of compromise offence u/s 376 I.P.C. and POCSO Act can be quashed.
  5. Allahabad High Court in the case of Pravin Kumar Singh @ Pravin Kumar and
    2 others vs. State of U.P. & another (Application u/s 482 No. 2941 of 2023) as
    well as in the case of Om Prakash vs. State of U.P. and another (Application u/s
    482 No. 8514 of 2023) observed that once the case is made out on the basis of
    statement of victim girl then proceeding under POCSO Act cannot be quashed on
    the basis of compromise between the victim and accused because the offence under
    POCSO Act is offence against the society.
  6. Similarly, Hon’ble Supreme Court in the cases of State of Madhya Pradesh. vs.
    Laxmi Narayan [AIR 2019 SC 1296]; State of Madhya Pradesh vs. Dhruv Gurjar
    [AIR 2019 SC 1106]; and Parvat Bhai Ahir vs. State of Gujarat [AIR 2017 SC
    4842] observed that offence against the society should not be quashed on the basis
    of compromise or weak evidence. However, in the case of Ramawatar vs. State of
    Madhya Pradesh [2021 SCC Online SC 966], the Apex Court observed that the
    offence under special statute including SC/ST Act, though the offence is against
    society, can also be quashed in exercise of power u/s 482 Cr.P.C. in certain cases on
    the basis of compromise, but this power should be exercised during pendency of
    trial or appeal not thereafter. Paragra-10 of the above judgement is quoted as
    below:-
    “10. So far as the first question is concerned, it would be ad rem to outrightly refer to
    the recent decision of this Court in the case of Ramgopal & Anr. v. The State of
    Madhya Pradesh, wherein, a two Judge Bench of this Court consisting of two of us
    (N.V. Ramana, CJI & Surya Kant, J) was confronted with an identical question.
    Answering in the affirmative, it has been clarified that the jurisdiction of a Court
    under Section 320 Cr.P.C cannot be construed as a proscription against the
    invocation of inherent powers vested in this Court under Article 142 of the
    Constitution nor on the powers of the High Courts under Section 482 Cr.P.C. It was
    further held that the touchstone for exercising the extraordinary powers under Article
    142 or Section 482 Cr.P.C., would be to do complete justice. Therefore, this Court or
    the High Court, as the case may be, after having given due regard to the nature of the
    offence and the fact that the victim/complainant has willingly entered into a
    settlement/compromise, can quash proceedings in exercise of their respective
    constitutional/inherent powers.”
  7. This Court finds that although no specific provision has been incorporated in the
    Cr.P.C. for compounding any offence other than those mentioned in Section 320
    Cr.P.C., there may still be cases where victim would prepare to condone the
    conduct of the accused even though the charge is not compoundable. In such cases
    Court can exercise its inherent power u/s 482 Cr.P.C. even the offence is noncompoundable
    u/s 320 Cr.P.C. Though the High Court should not normally
    interfere with the criminal proceeding involving sexual offence against women and
    children only on the basis of ground of settlement, however it is not completely
    foreclosed in exercising its extraordinary power u/s 482 Cr.P.C. to quash such
    proceeding. This Court opined that in such cases, a holistic approach ought to be
    adopted considering issue from different perspective, in order to identify the cases
    fit for compromise, keeping in mind: (i) the nature and effect of offence on the
    consciousnesses of society; (ii) the seriousness of injuriy, if any; (iii) voluntary
    nature of compromise between the accused and victim; and (iv) conduct to the
    accused person, prior to and after the occurrence of the purported offence or other
    relevant considerations.
  8. In the present case it is clearly established from the statement of victim recorded
    u/s 164 Cr.P.C. as well as rediological examination of victim that she is above 18
    years and the victim in her statement u/s 164 Cr.P.C. has clearly stated that she got
    married to the applicant Fakre Alam on 10.7.2014 willingly.
  9. In the judgement of Ankit Jatav vs. State of Rajasthan, S.B. Criminal Misc.
    (Petition) No. 3075 of 2023 decided on 31.5.2023, the Single Bench of Rajasthan
    High Court quashed the proceeding under POCSO Act on the ground that victim in
    her statement u/s 164 Cr.P.C. has stated that no offence was committed by the
    accused and she willingly left her house to get married to him.
  10. Section 2(1)(d) of POCSO Act clearly defines the child who is below the age of
    18 years but from the material available on record it appears that victim is above 18
    years then no case under POCSO Act is made out and victim also stated u/s 164
    Cr.P.C. that applicant has not committed any sexual offence against her and since
    the date of marriage they have been residing as husband and wife and, her mother
    just to extract five lakh rupees from her husband (applicant), lodged the present
    false case. In the medical examination also, no injury was found on the person of
    the victim and no opinion about sexual assault was given against the victim.
    Therefore, from the evidence on record it is also clear that no offence is made out
    against the present applicant. Filing of the charge sheet against the applicant u/s
    363, 366, 376; 2N, 506 I.P.C. as well as Section 6 of POCSO Act was itself
    incorrect.
  11. Therefore, this Court opined that the proceedings under POCSO Act as well as
    u/s 376 I.P.C. can be quashed if no case is made out from the material available on
    record but the police has filed charge sheet in routine manner without looking into
    the material collected during the investigation.
  12. In view of the above fact, the proceedings of Case No. 294 of 2021 (State vs.
    Fakre Alam), arising out of Case Crime No. 330 of 2015, u/s 363, 366, 376(2N),
    506 I.P.C. and 6 POCSO Act, P.S. Baradari, District Bareilly, is hereby quashed.
  13. The application is allowed.
    Order Date :- 6.6.2023
    Vandana
    Digitally signed by :-
    VANDANA GAUTAM
    High Court of Judicature at Allahabad

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